रातों के आईने को, मेरा सलाम करना

तेरे प्यार के महल में, वादे तमाम करना
हो जाऊँ कैद उसमे ,कुछ इंतजाम करना

धड़कन की हो दीवारें,साँसों की हो कतारें
सो जाऊं मैं सुकूँ से,दिले-एहतिमाम करना
                                  
मदहोश आसमां में ख़्वाबों का चाँद देखू
रातों के आईने को, मेरा सलाम करना

काँटो से है घरौंदे,मखमल सी है अदाएं
आगोश में सनम के,शबे-ऐहतराम करना

रोती है देखो कब तक”निशान”इन लबों की
ख़ामोशी के जहाँ को,तुम कोहराम करना

एहतिमाम-प्रबन्ध

त्रिपुरेंद्र ओझा निशान

Leave a comment