कोरोना पर कुछ दोहे द्वारा सरिता कोहिनूर

कोरोना की फैलती,बीमारी घर द्वार।
महमारी भारी हुई,कहता अब संसार।।

काल भंयकर आ गया,भज लो प्रभू का नाम।
कोरोना का हो गया,विश्व बड़ा अब धाम।।

छूने से यह फैलता,खाँसी छींक जुकाम।
श्वसन तंत्र को फेल कर,मृत्यु लाय तमाम।

विचलित मानव सभ्यता,जीवन के आधार।
कोरोना का डर बुरा,घबराया संसार।।

अर्थव्यवस्था ठप्प है,ठप्प हुये सब काम।
मंदिर मस्जिद बंद है,घर में बंद अवाम।।

शेयर सभी लुटक गये,बंद हुये व्यापार।
भारी क्षती के दिख रहे,हम सबको आसार।।

त्राही त्राही मच गई, हुई प्रकृति की मार।
भैया अब तो बंद कर,सारे अत्याचार।।

साबुन से अब हाथ धो,कुछ मत छूना यार।
कहना यदि तुम मान लो,बचा रहे आधार।।

महमारी से जूझते,बूढे, बाल, जवान।
दूषित पानी अरु हवा,है विष वेल समान।।

कालेज इस्कूल बंद सब,और सिनेमा हाल।
सभागार सब बंद है,बंद हुये सब माल।।

सैर सपाटा बंद कर ,घर चुप बैठें लोग।
रूखी सूखी जो मिले,शांत लगाये भोग।।

कोरोना से हो रहा ,महा भयंकर नाश।
मानव मूरख खुद बना,करके जगत विनाश।।

सरिता कोहिनूर 💎

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