हमारा देश हमारा परिवार

नजरें छुपा-छुपा कर
तुम जा कहाँ रहे हो
ये देश है हमारा
क्यूँ इसे ठुकरा रहे हो।

बन के तू आतंकी
पुरानी सीरत गवा रहे हो
अपने गोलियों के धुन से
क्यूँ इसको डरा रहे हो

क्या तुम्हें पता है
इसी भूमि पर पले बढ़े हो
फिर इन बारूदों से
क्यूँ सीना इसका दहला रहे हो।

कल तक था जिनको पूजा
आज उन्हें ही रूला रहे हो
कल बनाया जिसे सुहागन
आज सुहाग उसका मिटा रहे हो
नजरों की बात छोड़ो
क्यूँ बहन से कलाई छुपा रहे हो।

यहाँ मां, बहन, बेटी,भाई सभी हमारे
फिर क्यूँ दरिंदे बन रहे हो
अपनी दरिंदगी से
क्यूँ इनको सता रहे हो।

अब भी वक्त है तू आ जा
जिस राह से गुजर रहे हो
जिससे खिल उठे वतन हमारा
क्यूँ न उसे अपना रहे हो।
ये देश नहीं परिवार है हमारा
क्यूँ इसको सता रहे हो।

आपका:–प्रियव्रत कुमार

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