काश आदमी इंसान बन जाये
मजहब सब का ईमान बन जाये ,
दैरो हरम सब मोहब्बत के हो
मोहब्बत पूजा अजान बन जाये ,
न अदावत हो भाई की भाई से
वो इस की ये उस की जान बन जाये ,
कर हिदायत अमीरे शहर को खुदा
कि मुफलिस पर मेहरबान बन जाये ,
रहे दिल में उस के हर पल फकीरी
चाहे मुल्क का सुल्तान बन जाये ,
जमीर जिन्दा रहे निगहे बान का
न वतन का वो बेईमान बन जाये ,
अगर ‘राकेश’ ये हो जाये वतन में
तो जन्नत हिंदुस्तान बन जाये ,
🎊🌷राकेश कुमार मिश्रा🌷🎊
बहुत अच्छी कविता
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बहुत सुंदर
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