दूरियां इस कदर मिटाने लगे हैं
वो नजदीक मेरे आने लगे हैं
बन्द आँखों से भी नजर आते हैं
इस कदर दिल मे समाने लगे हैं
रूठ सकते नहीं एक पल के लिए
रूठ जाऊं तो फिर मनाने लगे हैं
रंगीनियां और मस्ती का आलम
ख्वाब आँखों में सजाने लगे हैं
मेरे अपने हुए, नहीं वो अजनबी
हाले दिल अपना बताने लगे हैं
जिंदगी भी तो मेरी मुस्कुराने लगी
अपनापन जबसे जताने लगे हैं
-किशोर छिपेश्वर”सागर”
बालाघाट