तू कभी मिले जो फुर्सत में ए जिंदगी
तो बैठ कर कहीं दो दो जाम हो जाए
कुछ हाल अपना सुनाएं कुछ तेरा सुने
बस यूं ही वक्त कटे और जिंदगी की शाम हो जाए
बहुत तल्खियां हैं नसीब में अपनी
आ जिंदगी कुछ तो तेरे नाम कर जाएं
खुदा ने हथेलियां तो दी मगर लकीरें भूल गया
चल कुछ नहीं तो खंजर से ही लकीरें खींच आएं
जिंदगी, नाराज नहीं तुझसे बस शिकवा है यही
हर बार मेरी गली के मोड़ से ही तू मुड़ जाए।
डा. नीलम
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