हाँ कविता बोलती है, हाँ कविता बोलती है,
मन की सारी वेदनाएं और खुशियां खोलती है।
हाँ कविता बोलती है, हाँ कविता बोलती है
एक यौवन हो सवेरा या वो ढलती शाम हो,
या बसन्ती रूप हो या पतझरों का याम हो।
सूख चुके फूल में भी खुश्बुओं को घोलती है।
हाँ कविता बोलती है, हाँ कविता बोलती है
बाहरी सब आहटों को है परखती आग में,
स्वप्न हो या हो हकीकत गा उठे हर राग में।
शब्द के लेकर तराजू भाव उसमें तोलती है,
हाँ कविता बोलती है, हाँ कविता बोलती है
ज़िन्दगी रिश्ते निभाती है स्वयं को तोड़कर,
हाँ नदी सिंधु में जाती पत्थरों को मोड़कर।
प्रीत की मधुशाल में वो बिन पिये ही डोलती है,
हाँ कविता बोलती है, हाँ कविता बोलती है
नरेंद्रपाल जैन
आपकी लिखी रचना “सांध्य दैनिक मुखरित मौन में” आज बुधवार 04 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है…… “सांध्य दैनिक मुखरित मौन में” पर आप भी आइएगा….धन्यवाद!
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वाह, बहुत ही बढ़िया रचना।
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Bahut sundar
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