दिनोंदिन दल बदलते हो पूछते हो कि मैं खुश हूँ,
पासा पल में पलटते हो पूछते हो कि मैं खुश हूँ !
अनुशासन या डर कहो है बहुत जरुरी घर-बाहर,
अधनंगे खुद निकलते हो पूछते हो कि मैं खुश हूँ !
पहले तुमने देश भीतर जड़-तने खंडित किये,
विघटन की चालें चलते हो पूछते हो कि मैं खुश हूँ !
आजादी के मायने अफजल कन्हैया क्या समझें,
अफसोस तुम पक्ष रखते हो पूछते हो कि मैं खुश हूँ !
मन कहे, खुशियाँ बाँटूं सो कह चला, हूँ खुश बड़ा,
अस्मिता को लूटते हो पूछते हो कि मैं खुश हूँ !
~ अमर अद्वितीय मथुरा
Nice poyem
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उम्दा रचना !!😊
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