चाहत में कुर्सी की देखो नीति नियम सब ध्वस्त हुए ।
संस्कार सद्भाव समर्पण मानो रवि सम अस्त हुए॥
नवाचार दिखता है यहां अब केवल भ्रष्टाचारी का।
चहुंओर डंका है बजता गद्दारी मक्कारी का॥
सरे बाजारों में अब नेताओं की मंडी लगती है।
राजनीति की शक्ल मुझे अब क्रूर घमंडी लगती है।
खूब विधायक बिकते है अब मंहगे सस्ते दामो में।
खूब कमाई होती है अब उल्टे सीधे कामों में॥
कोई विधायक छुपा रहा हैं कोई उन्हे पुचकार रहा।
लालच देता मंत्री का पद का कोई जूता मार रहा॥
नैतिकता की बातें अक्सर घोषणाओं में मिलती हैं।
शक्ल देखने नेता की केवल चुनावों में मिलती हैं॥
बेशक दीपक बिन बाती के हरगिज कभी नहीं जलता।
लेकिन राजनीति के अंदर ऐसा नियम नहीं चलता॥
मेरा दीपक तेरी बाती उसका तेल जलाएंगे।
आओ चोरों हम सब मिलकर के सरकार बनाएंगे॥
जब तक संभव है तब तक ही सारे मौज उडाएंगे।
एक दिन हम सब मिलकर के इस भारत को खा जाएंगे॥
– बृजबिहारी ‘ विराट ‘
आपकी लिखी रचना “सांध्य दैनिक मुखरित मौन में” आज बुधवार 27 नवम्बर 2019 को साझा की गई है……… “सांध्य दैनिक मुखरित मौन में” पर आप भी आइएगा….धन्यवाद!
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