वह पायल नहीं पहनती पांव में बस एक काले धागे से कहर बरसाती है उसकी यही अदा तो ‘निल्को’ मुझे उसका दीवाना बनाती है बहुत मजे से इठलाती है गूढ़ व्यंग की मीन बहुत बनाती है माथे पर जब बिंदी लगाती है तो पूरे विश्व को सुंदर बनाती है ‘मधुलेश’ का ख्याल आए तो वह भी कविता बनाती है जीवन की गहन अनुभूतियों पर लिखने का प्रयास कर रचना वो बनाती है मौसम बेईमान हो जाए जो तपाक से रसोई में जाकर पकोड़े वो बनाती है बस कुछ ही यूं ही आए हैं बड़े दिनों बाद इस ब्लॉग पर पढ़कर वह भी इसे सार्थक बनाती है *****************************
One thought on “…वो कहर बरसाती है – एम के पाण्डेय ‘निल्को’”
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (06-05-2019) को \”आग बरसती आसमान से\” (चर्चा अंक-3327) पर भी होगी।–सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।–हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर…!डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (06-05-2019) को \”आग बरसती आसमान से\” (चर्चा अंक-3327) पर भी होगी।–सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।–हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर…!डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
LikeLike