समय पर जब यह समय मिला
उनके लिए ही यह गीत बुना
मुलाकात जब उनसे हुई
मानो बंजारे को घर मिला
देखा उनको जब आज के दिन
अच्छा नहीं लग रहा अब उनके बिन
मुलाकात का क्या हाल बताऊ
सोच रहा हूँ कोई कविता गाऊँ
तुम्हारे पास हूँ लेकिन
जो दूरी मैं समझता हूँ
तुम्हारे बिन यह रिश्ता
अधूरा है समझता हूँ
तुम्हे मैं भूल जाउगा
यह मुमकिन है नहीं लेकिन
पर तुम्ही को भूलना सबसे
जरुरी है समझता हूँ
अच्छा लगा मिल कर उनसे
बातें हुई पर न खुल कर उनसे
दिन का एक पहर कुछ ऐसे निकला
जैसे निल्को का कोई अपना निकला
सोच रहा हूँ की लिखूँ उनपर
लेकिन शुरुआत करू मैं कहा से
शब्दों के युद्ध हो रहे दिमाग में
काफी कुछ लिखा है उनके चेहरे के किताब में
निल्को ने जब देखा अपनी नज़र से
सब कुछ भूल गया उनकी असर से
क्षणिक मिलाप पर क्या कहूँ
कैसे इस पर कोई गीत लिखू
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एम के पाण्डेय ‘निल्को’