एक कविता जो शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई …!
एक कविता जो शुरू होने से पहले
ही खत्म हो गई !
शाम ढलने से पहले
ही सुबह हो गई
बैठा था किसी के आदेश के इंतजार में
और बैठा ही रह गया
उस आदेश की इंतजार मे जो
कभी तो मिलेगी ,
किसी काम को पूरा करने के लिए
लेकिन आदेश से पहले
ही वह पूरी हो गई ।
कभी – कभी तो लोग
कुछ कहते है निल्को ,
और आप करते हुये भी
न करते है उसको ॥
इन सब बातों से लगा की
एक बार फिर ज़िंदगी
नई से पुरानी हो गई ।
लेकिन ये
एक बुरे सपने जैसा था
और मैं समझा की यही
अपनी कहानी हो गई ।
रात के बाद एक
नई सुबह फिर आई
और
मुझे इन बेकार की बातों से
अलग कर गई ।
इन सब बातों को
कविता के माध्यम से लिखने की
कोशिश की तो
कविता शुरू हो ने से पहले ही
खत्म हो गई ।
मधुलेश कुमार पाण्डेय “निल्को”
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